नेतन्याहू के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी करने वालों जजों पर प्रतिबंध

अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय ने फ्रांस और बेल्जियम के साथ मिलकर उसके न्यायाधीशों और अभियोजकों पर प्रतिबंध लगाने के लिए अमेरिका की कड़ी आलोचना की है। अमेरिका के इस कृत्य को आईसीसी ने न्यायालय की न्यायिक स्वतंत्रता पर करारा हमला करार दिया है।बुधवार को स्थानीय समयानुसार जारी एक बयान में आईसीसी ने कहा कि अमेरिकी प्रतिबंधों की चिंता किए बगैर वह अपने काम को जारी रखेगा। साथ ही आईसीसी ने अपने 125 सदस्य देशों से अंतर्राष्ट्रीय अपराधों के पीड़ितों को न्याय दिलाने में अपने कार्य के लिए निरंतर समर्थन देने के लिए भी आह्वान किया।
अमेरिकी प्रतिबंध निष्पक्ष न्यायिक संस्था की स्वतंत्रता पर खुला हमला
आईसीसी ने अपने बयान में कहा कि ये प्रतिबंध निष्पक्ष न्यायिक संस्था की स्वतंत्रता पर खुला हमला है। ये प्रतिबंध न्यायालय के सदस्य देशों, नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था और सबसे बढ़कर, दुनिया भर के लाखों निर्दोष पीड़ितों का अपमान हैं।
अमेरिका ने क्यों लगाया प्रतिबंध
दरअसल, संयुक्त राज्य अमेरिका ने अमेरिकी सैनिकों और इस्राइली नेताओं के खिलाफ मामलों में उनकी भूमिका के लिए अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी) के दो न्यायाधीशों और दो अभियोजकों पर प्रतिबंध लगाए हैं। इनमें इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट भी शामिल है।
अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने एक ट्वीट कर इन प्रतिबंधों की घोषणा की। उन्होंने बताया कि नेतन्याहू के खिलाफ वारंट जारी करने वाले मामले की अध्यक्षता कर रहे फ्रांस के न्यायाधीश निकोलस यान गुइलौ को ब्लैक लिस्ट में डाला गया है। इसके साथ ही न्यायाधीश किम्बर्ली प्रोस्ट और उप अभियोजक नजहत शमीम खान और मामे मंडियाये नियांग भी शामिल हैं।
रुबियो ने अपनी पोस्ट में कहा कि आईसीसी अमेरिका की राष्ट्रीय संप्रभुता की अवहेलना करना जारी रखे हुए है। हम अमेरिकियों और इस्राइलियों के खिलाफ आईसीसी की नैतिक रूप से दिवालिया और कानूनी रूप से निराधार कार्रवाइयों के लिए जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराना जारी रखेंगे।