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 लिपुलेख को लेकर नेपाल के सोशलिस्ट फ्रंट की आपत्ति

नेपाल के सोशलिस्ट फ्रंट ने लिपुलेख दर्रे से भारत-चीन व्यापार पुनः शुरू करने के समझौते की तीखी आलोचना की है। चार वामपंथी दलों के गठबंधन ने इसे नेपाल की संप्रभुता पर आघात बताया और कहा कि लिपुलेख, लिम्पियाधुरा और कालापानी नेपाल के अभिन्न हिस्से हैं। फ्रंट ने नेपाल सरकार से इन क्षेत्रों की वापसी हेतु ठोस कूटनीतिक पहल की मांग की है।

नेपाल के सोशलिस्ट फ्रंट ने भारत और चीन के बीच लिपुलेख दर्रे से व्यापार फिर से शुरू करने के समझौते की कड़ी आलोचना की है। फ्रंट ने शुक्रवार को सरकार से अपील की कि वह विवादित क्षेत्र को वापस लाने के लिए कूटनीतिक प्रयास करे। चार वामपंथी विपक्षी दलों के इस गठबंधन ने बयान में कहा, भारत और चीन के बीच लिपुलेख को लेकर हालिया समझौते ने नेपाल की संप्रभुता पर गहरी चोट पहुंचाई है। फ्रंट ने दावा किया कि लिपुलेख, लिम्पियाधुरा और कालापानी नेपाल का अभिन्न हिस्सा हैं और इसके ऐतिहासिक प्रमाण हैं।

इस बयान पर सीपीएन (माओवादी केंद्र) प्रमुख पुष्पकमल दहल ‘प्रचंड’, सीपीएन (यूनिफाइड सोशलिस्ट) अध्यक्ष माधव नेपाल, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (क्रांतिकारी) महासचिव नेत्र विक्रम चंद व नेपाल समाजवादी पार्टी अध्यक्ष महेन्द्र राय यादव के हस्ताक्षर हैं। इसमें कहा गया है कि नेपाल सरकार ने इन क्षेत्रों की वापसी के लिए कूटनीतिक पहल नहीं की है।

जानें लिपुलेख दर्रा क्या हैं और यह कहां है?
लिपुलेख दर्रा भारत की सीमा पर नेपाल से सटा हुआ क्षेत्र है। नेपाल लंबे समय से इस पर अपना दावा करता आ रहा है। इतना ही नहीं नेपाल सीमा पर सटे भारत के कुल 372 वर्ग किमी इलाके, जिसमें भारत-नेपाल-चीन ट्राई-जंक्शन पर लिंपियाधुरा और कालापानी भी शामिल हैं, पर भी दावा करता रहा है। यह क्षेत्र उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले पर हैं।

इनमें लिपुलेख दर्रे की खास अहमियत है। यह दर्रा हिमालय के पहाड़ों के बीच समुद्र की सतह से करीब 17 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। भारत-चीन-नेपाल के बीच स्थित इस दर्रे को सदियों से भारत व्यापार के लिए इस्तेमाल करता रहा है। इतना ही नहीं चीन के दायरे में आने वाले कैलाश पर्वत रेंज और मानसरोवर तालाब तक जाने के लिए यह भारत का अहम मार्ग है। इससे भारत के उत्तराखंड में आने वाला कुमाऊं क्षेत्र और तिब्बत का तकलाकोट सीधे जुड़ता है।

ऐसे में धार्मिक और कूटनीतिक दोनों ही कारणों से लिपुलेख दर्रा भारत के लिए अहम रहा है। धार्मिक इसलिए क्योंकि हिंदुओं, बौद्ध और जैन धर्म के लोगों के लिए कैलाश मानसरोवर अलग अहमियत रखता है। कूटनीतिक इसलिए, क्योंकि भारत-चीन सीमा पर यह सड़क कनेक्टिविटी, सैन्य लॉजिस्टिक्स और व्यापार मार्ग के तौर पर अहम है।

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